लिट्टी चोखा वालों को कब तक मिलेगा 'धोखा'

Litti  Chokha In Bihar(Pic: newsstate)

ना ना ना यह किसी एक के बारे में नहीं है बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिल्ली के 'हुनर हाट' में लिट्टी चोखा खाने को बड़ी चर्चा मिली हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें अकेले बिहार को अब तक मिले धोखे के बारे में जवाब देह ठहरा दिया जाए।

हालांकि 6 साल से वह केंद्रीय सत्ता में जरूर हैं और उनकी पार्टी भी एक दशक से ज्यादा समय तक बिहार की सत्ता में साझीदार रही है, लेकिन इस चर्चा को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरूरत है। बिहार में एक कहावत प्रचलित है कि 'जिस ने खाया लिट्टी चोखा वह नहीं खायेगा धोखा' किंतु बिहारियों के संदर्भ में क्या यह बात पूरी तरह से गलत साबित हुई है। उन्हें एक नहीं बार-बार धोखा मिलता रहा है। वह चाहें नीतिगत धोखा हो वह चाहे सामाजिक धोखा हो चाहे वह विकास के संदर्भ में ही छलावा क्यों ना रहा हो। पर मुश्किल यह है कि इसके लिए कोई भी जवाबदेही लेने को तैयार नहीं है!

प्रश्न यहां तक भी रहता तो गनीमत थी लेकिन आगे के विकास के लिए भी किसी पार्टी के पास कोई ठोस रोडमैप नहीं है। हां चुनाव जीतने के लिए उनके पास तिकड़म जरूर है। इन टिप्पणियों में कोई एक नहीं बल्कि सभी साझीदार रहे हैं। तमाम गठबंधन टूटे हैं, तमाम गठबंधन बने हैं, अकेले सत्ता भी मिली है लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।

लिट्टी चोखा तक तो ठीक है लेकिन हमारे प्रधानमंत्री और बिहार की सत्ता में भागीदार उनकी अपनी पार्टी भाजपा अगर बिहार के विकास के लिए रोड मैप प्रस्तुत करती है तो कहीं ना कहीं बिहारियों का उन पर भरोसा जरूर जगेगा। राष्ट्रीय जनता दल जिसकी आज भी बिहार में बेहद मजबूत पकड़ है बल्कि सिंगल लार्जेस्ट पार्टी की बात करें तो जनाधार के स्तर पर यह राजद ही है। लेकिन विडंबना यह है कि बिहार के विनाश में उस का सर्वाधिक रोल माना जाता है। यहां तक कि लालू प्रसाद यादव के शासनकाल को जंगलराज की संज्ञा दी गई। 

हालांकि सामाजिक न्याय को लेकर लालू प्रसाद यादव का अपना कार्य रहा है और उसे तमाम लोग स्वीकार भी करते हैं। पर अब सवाल भविष्य को लेकर है। राजद की कमान नई पीढ़ी के तेजस्वी यादव के हाथों में दी जा चुकी है किंतु उन्होंने कोई ठोस प्रभाव जमाया हो ऐसा दिखता नहीं है। बल्कि अपनी पार्टी के यहां तक कि अपने भाई तेजप्रताप तक को साथ लेकर चलने में वह सफल नहीं हो सके हैं। देखना दिलचस्प होगा कि बिहार चुनाव के संदर्भ में राजद की क्या रणनीति होती है?

देशभर में पॉलिटिकल स्ट्रेटजिस्ट के रूप में पहचान बना चुके प्रशांत किशोर भी अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन बिहार चुनाव को प्रभावित करने का कैंपेन शुरू कर चुके हैं। 'बात बिहार की' नाम से काउन्सिल चलाकर उन्होंने युवाओं को जोड़ना शुरू कर दिया है। देखना दिलचस्प होगा कि उनकी यह स्ट्रेटजी उनके गृह राज्य में कितना प्रभाव छोड़ पाती है। कहा भी जाता है कि आदमी की असली परीक्षा उसके घर में होती है, तो प्रशांत किशोर की भी एक तरह से परीक्षा ही है। बाकी जगहों पर तो वह चुनाव जिताने का तमगा ले चुके हैं यहां तक कि बिहार में भी नीतीश और लालू का गठबंधन करा कर उनके नाम एक उपलब्धि है। और वह ग्राउंड लेवल पर भी उससे जुड़े रहे हैं लेकिन उनकी असली परीक्षा तो अब होगी!


और भी कई छोटी बड़ी पार्टियां मैदान में है लेकिन लिट्टी चोखा खाने वालों को धोखा नहीं मिलेगा इस बात की गारंटी कोई भी दे सकने में सफल नहीं हुआ है।

-विंध्यवासिनी सिंह 

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