अब आगे क्या?


यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हर कोई ढूंढ रहा है लेकिन इसका उत्तर ढूंढना उतना ही मुश्किल हो गया है जितना भूसे के ढेर में सुई ढूंढना है। कोरोना महामारी जिस तरह से कहर बरपा रही है और एक के बाद दूसरी मुसीबत से रूबरू करा रही है उससे क्या गरीब या अमीर हर कोई कांप सा गया है। गरीब जहां अपनी रोजी-रोटी को लेकर परेशान है, वहीं अमीर व्यक्ति उद्योग धंधों को लेकर परेशान है। इतना ही नहीं छोटे बड़े सभी देश भी अपनी इकॉनॉमी और व्यवस्था को लेकर बड़े स्तर पर चिंतित हैं।

भारत में भी केंद्र सरकार इस पर लगातार माथापच्ची कर रही है और विपक्ष के नेताओं समेत हर किसी से सुझाव मांग रही है। इस उम्मीद में कि क्या पता इस लाइलाज मर्ज की कोई दवा बता दे, कोई सुझाव बता दे! 
मगर सुझाव अगर इतना ही आसान होता तो कोई भी ना ढूंढ लेता? हालाँकि इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा 5T यानी टेस्टिंग, ट्रेसिंग, ट्रीटमेंट, टीम वर्क और ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग की पहल की गई है जो एक सराहनीय कदम है। निश्चित रूप से दक्षिण कोरिया जैसे देश भारी मात्रा में टेस्टिंग करके ही इस समस्या पर काबू पा सकने में सफल रहे हैं। 

इसी क्रम में  कांग्रेस पार्टी की लीडर सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी की सभी दल के नेताओं को साथ लेकर चलने की कवायद का जवाब देते हुए पांच सुझाव भेजें हैं मोटे तौर पर इनमें से सभी सुझाव स्वागत योग्य है। जिनमें एक है सरकारी विज्ञापनों पर पूरी तरह से ना सही लेकिन 50 परसेंट भी अगर रोक लगाई जाती है तो 10,000 करोड़ से अधिक की बचत मुमकिन है। इसी प्रकार नए संसद भवन को लेकर 20,000 करोड़ की राशि एलोकेट की गई थी जिसे कोरोना जैसी महामारी के दौर में देशहित में खर्च करने का सुझाव श्रीमती सोनिया गांधी ने दिया है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। इसी प्रकार एक दो और सुझाव भी उन्होंने पेश की है जिसकी गंभीरता सरकार बेहतर तरीके से समझ सकती है। निश्चित रूप से हर कोई अपनी तरफ से कोशिश कर रहा है कि इससे आगे क्या होगा? 

कहते हैं जब किसी के पास किसी प्रश्न का सटीक उत्तर ना हो तो उसे सामूहिक नेतृत्व की रणनीति अपना लेनी चाहिए। यह बात पूरी तरह से उचित जान पड़ती है। वहीं राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने सुझाव दिया है कि अगर लॉक डाउन की स्थिति एक झटके से हटा ली जाती है तो अब तक जितना परिश्रम किया गया है जितना प्रयास किया गया है वह सब व्यर्थ हो जाएगा इसलिए लॉक डाउन को आंशिक तौर पर हटाया जाना चाहिए और इससे संबंधित नियमों को बेहद सख्ती से लागू करना चाहिए। इसके आलावा भी कई सुझाव आ रहे हैं जैसे धार्मिक आयोजनों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए तो स्कूल और शिक्षा से संबंधित कार्य प्रत्यक्ष रूप से बंद रहने चाहिए जबकि ऑनलाइन इसे और सक्रियता के साथ लागू करना चाहिए।

सबसे ज्यादा समस्या उद्योग धंधों को लेकर है जहां काम पूरी तरह से ठप पड़े हुए हैं। अक्सर खबरों में पढ़ने और सुनने  को मिलो रहा है कि फलां कंपनी किसी को सैलरी नहीं दे रही है तो कोई अपने मकान का किराया चुका पाने में असमर्थ है! देखा जाए तो इसमें किसी का दोष भी नहीं है क्योंकि अगर किसी मकान मालिक ने अपना कोई घर किराए पर चढ़ा रखा है तो उसे भी उसकी ईएमआई देनी हो सकती है और यह उसकी अर्थव्यवस्था से संबंधित मामल है। इसी प्रकार अगर कोई फैक्ट्री मालिक आपने किसी इम्प्लॉयी को सैलरी नहीं दे पा रहा है तो देखने में बेशक यह  अन्याय पूर्ण लगे लेकिन सच्चाई तो यह है कि जब उसकी फैक्ट्री बंद है तो वह अपने इम्प्लॉयी को कहां से सैलरी दे सकता है? ऐसी स्थिति में लॉक डाउन को क्रमिक रूप से हटाए जाने की आवश्यकता है।


इसके साथ ही कुछ फैक्ट्रियां प्रिकॉशंस के साथ खोली जा सकती हैं। यातायात के साधनों को भी सीमित रूप से चलाया जा सकता है जिससे उसे आसानी से सैनिटाइज किया जा सकता है। हर जगह  सीमित ही सही लेकिन जांच की व्यवस्था की जानी चाहिए। अभी तक जो रुझान आ रहे हैं उसके अनुसार कुछ देश बेशक यह दावा कर रहे हों कि उनके यहां वैक्सीन उपलब्ध हो गई हो लेकिन अभी भी पूरी तरह से टेस्ट नहीं हुई। अतः लंबी स्थिति के लिए हमें सीमित लॉक डाउन के साथ आगे बढ़ना चाहिए ताकि प्रोडक्टिविटी प्रभावित ना हो।

इस कोरोना के दौर में एक नयी चीज़ उभर के सामने आयी है 'वर्क फ्रॉम होम'।  जी हाँ 'वर्क फ्रॉम होम' कल्चर से भारत अभी अछूता था लेकिन कोरोना ने इस क्षेत्र में राह खोल दिए हैं। वहीं घर से कार्य करने में जो सबसे बड़ा सहयोग है वह इंटरनेट का है हालांकि आज के समय में तमाम मोबाइल डिवाइसेज इंटरनेट के साथ आ रही है उनमें डाटा उपलब्ध है लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि ऑफिस कि इंटरनेट कनेक्टिविटी 'लीज लाइन' के ऊपर डिपेंड होती है, जबकि होम ब्रॉडबैंड की कनेक्टिविटी उससे कई मायनों में कमतर रहती है और काम इससे कहीं न कहीं प्रभावित होता है। वैसे भी घरों से जो लोग कार्य करने की कोशिश कर रहे हैं इंटरनेट कनेक्टिविटी में काफी परेशानी का सामना कर रहे हैं इसे बड़े स्तर पर सुलझाए जाने की आवश्यकता है। सरकार को और संबंधित सरकारी एजेंसियों को इस बारे में अवश्य ही ध्यान देना चाहिए। वैसे भी 'वर्क फ्रॉम होम' का कल्चर भारत जैसे बड़े देश में बढ़ता है तो इससे छोटे और मझोले बिज़नेस को काफी फायदा होगा क्योंकि इससे उत्पादकता बढ़ेगी, ऑफिस का खर्च बचेगा और सस्ते इम्प्लॉयी मिलेंगे। 

व्यक्तिगत रूप से भी हम सबको आगे क्या होगा? इस प्रश्न पर माथापच्ची करने की बजाय अपने के लिए तैयारी करनी चाहिए। हम अपनी कंपनी के साथ किस प्रकार से जुड़े रह सकते हैं? हम किस प्रकार से योगदान दे सकते हैं? हमें किस प्रकार से आगे के लिए प्लानिंग करनी चाहिए जैसे विषयों पर हमें ज्यादा सोचना चाहिए, बजाय इसके कि हम इस अवस्था में और शून्य हो जाएँ। ध्यान रहे कोरोना की वजह से सबकुछ बंद पड़ा है लेकिन हमारा दिमाग नहीं और यही समय है भविष्य की तैयारी का और इस समय जो तैयारी करेगा वही आगे टिक पायेगा।  

ध्यान रहे यह एक ऐसा पल है जो कोरोना से सबको मिलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा। तमाम इंडस्ट्रीज अफेक्टेड हैं लेकिन अगर सभी मिलकर प्रयास करते हैं तो कोई कारण नहीं है कि कोरोना  से उपजे तमाम प्रश्नों का हल हम दे सकने में सक्षम नहीं होंगे।

-विंध्यवासिनी सिंह 

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